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चतुर्थ स्तंभ : मन शांत हो , दिन आनंदमय
मिड-लाइफ़ में तनाव किसी कमी से नहीं, परिस्थिति से होता है। लक्ष्य तनाव मिटाना नहीं, बल्कि ख़ुद को सभी परिस्थियों में शांत रहें, ऐसा बनाना है। इसमें कुछ अभ्यास कारगर पाए गए हैं-
- अनुलोम -विलोम-- दो-मिनट साँस पर ध्यान दें : कहीं भी, कभी भी,१-4 गिनते हुए साँस अंदर लें, 6–8 गिनते हुए धीरे धीरे साँस छोड़ें; पाँच बार इसे दोहराएँ। इससे मस्तिष्क के “आराम” या रिलैक्सेशन वाले पाथवे सक्रिय होते हैं।
- आपकी छोटा प्रयास: भजन/ मानसिक मंत्रोच्चार/ प्रकृति की ध्वनि/ अपनी कृतज्ञता डायरी/ शांत प्रार्थना, जो भी आपको अनुकूल लगे, दिन में जब भी समय मिले, करें! ये २-2 मिनट भी अपने में परिवर्तन लाने के लिए एक अच्छी शुरुआत हैं।
- मोबाइल नोटिफिकेशंस बंद कर दें : कब मोबाइल में समय देना है आप स्वयं तय करें हर पिंग का गुलाम मत बनिए। यह आपकी शांति और स्थिरता को नष्ट कर देती हैं।
- विचार-सूची बनाइए: जो दिमाग़ में घूम रहा है, सब लिख दें। जिसका निराकरण हो सकता है, उसका अगला स्टेप लिखें, जिसका आप कुछ नहीं कर सकते उसे अलग से लिखें, हफ़्ते में एक बार इस लिस्ट को देखें। आप पाएंगे कि इस उपाय से मन का भटकना बहुत हद तक कम हो जाएगा।
- ये सारे प्रयास पढ़ने सुनने में छोटे लगते हैं, पर कार्यान्वित करने पर कसे हुए जबड़े ढीले पड़ने लगते हैं, रात में जागना कम होता है, बेवजह खाने की आदत घटती है।
पंचम स्तंभ : रिश्ते और उद्देश्य
हम साथ में ही ठीक होते हैं। महिलाएँ अक्सर एक अदृश्य मानसिक भार ले कर चलती हैं—घर का कैलेंडर, खरीदारी की सूची, सबकी भावनाएँ। मिड-लाइफ़ वह समय है जब इसका खुलकर बँटवारा होना चाहिए।
- अपना अंतरंग व्यक्ति नाम लेकर तय करें: वे तीन लोग कौन हैं जिन्हें आप रात 10 बजे भी फोन कर सकती हैं? उन्हें बताइए कि वे आपकी सूची में हैं।
- सहायता सीधे शब्दों में माँगिए: “मुझे डिनर के बाद 30 मिनट चलना है—क्या आप उस समय किचन संभालेंगे?” क्या आप साथ चलेंगे? काम हम आकर मिलकर कर लेंगे?
- साथी ढूँढिए: परिवार का सदस्य /पड़ोसी / बहन/ सहकर्मी—साथ चलें, हर दिन वॉक के बाद एक टिक-मार्क करें और एक दूसरे को फोटो भेजें।
- आनंद के लिए अपनी रुचि को समय दें : बागवानी, गाना, कढ़ाई-बुनाई, स्वयं को पढ़ कर सुनाना, कथक/ योग—क्योंकि रुचि को समय देना, इसका कोई विकल्प नहीं है। यह आपके आनंद का आधार है।
- आप परिवर्तन क्यों चाहती हैं/ अपना “क्यों” लिखिए: जैसे “मैं भविष्य में फुर्तीली रहना चाहती हूँ”, “मुझे बिना हाँफे ट्रेवल करना है”, इस प्रकार लिखकर प्रतिदिन दिखने वाली जगह चिपकाएँ, जैसे फ्रिज, या दर्पण ।
षष्ठम स्तंभ : नशीले पदार्थ और सुरक्षा
बिना जजमेंट, बिना झूठ, पूर्ण सच्चाई से यह निश्चय करें -
तंबाकू—हर रूप में दूरी। अपने लिए भी ,अपने घर के लोगों लिए भी। महिलाओं के ३०% कैंसर एवं पुरुषों के ५०% कैंसर तंबाकू के कारण होते हैं। इससे दूरी ही भली।
अल्कोहल/ मदिरा/ नशे की दवाएं- ईमानदारी से मूल्यांकन करें : इनसे आपकी नींद/ मूड/ पेट पर क्या असर हो रहा है? लेते भी हैं तो कम और कभी-कभार। प्रयत्न रहे कि ये आपके जीवन का हिस्सा ही ना रहें।
दवाएँ-सप्लिमेंट—सोच-समझकर: खुद से कोई भी दवा शुरू न करें। पेरी-मेनोपॉज़/मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) में डॉक्टर की सलाह से वही लें जो आपके लिए फिट हो। मित्रों की देखा देखी किसी भी प्रिस्क्रिप्शन की नकल अपने लिए ना करें।
- स्क्रीनिंग-वैक्सीन-नियमित हो : उम्र/हेल्थ प्रोफाइल के हिसाब से कुछ जाँचें और टीके आपकी सुरक्षा का हिस्सा हैं। डॉक्टर आपको भारतीय गाइडलाइंस अनुसार बताएँगे। जो भी दवाएँ और वैक्सीन्स आपके लिए आवश्यक हैं, अपने चिकित्सक के परामर्श से लें, जितने दिन की लिखी है, उतने दिन की लें, जब दोबारा बुलाया है, जाएँ।आप अधिक स्वस्थ और सक्रिय अनुभव करेंगे।
बदलाव के पीछे का विज्ञान: सब जानते हैं, पर करते नहीं, क्यों?
हमारे मन की कई अच्छी योजनाएँ नहीं चलतीं इसलिए नहीं कि हम कमज़ोर हैं बल्कि- इसलिए कि दिमाग़ ऊर्जा बचाने और तुरंत आराम ढूँढने के लिए बना है। तो कोई भी बदलाव ऐसे डिज़ाइन करें—
- बहुत छोटा शुरू करें। जैसे “प्रतिदिन 30 मिनट” भारी लगे तो “डिनर के बाद 5 मिनट” आपका असली लक्ष्य हो। छोटी छोटी जीतें मन को नए रास्ते सिखाती हैं।
- नई आदत को पुरानी आदत से बाँधिए। जैसे-“रात ब्रश के बाद 2 मिनट स्ट्रेच, या शांत रहना।” पुरानी दिनचर्या नए प्रयास के लिए हुक बन जाती है और करना सरल हो जाता है ।
- परिवर्तन के उपकरणों को दिखने लायक बनाइए। जैसे -फल सामने हों, वॉकिंग शू दरवाज़े के पास हों , डेस्क पर पानी की बोतल भरी हो। ये छोटे उपाय आपको प्रेरित करते रहेंगे।
- मन की बाधाएँ घटाइए। जैसे- भोजन में सब्जी की मात्र बढानी है परंतु सब्ज़ी काटना बाधा है? व्यस्त दिनों में प्री-कट सब्जी लें। शाम बहुत व्यस्त रहती है? यो भी आपका निर्णय हो, वह सुबह कर लें।
- उत्साह बढ़ाने के लिए स्वयं को पुरस्कृत करें- अपने निर्णय के अनुरूप कार्य करने पर अपने लिए पॉजिटिव रीएनफोर्समेंट, सकारात्मक प्रयास करें। जैसे - कैलेंडर पर टिक लगाएं , वॉक के बाद दोस्त को छोटा सा फोन कॉल —इस तरह के पुरस्कार स्वयं को दें। कितने किलो वज़न कम हुआ है, इससे ज़्यादा, अपने ही निर्णयों के पालन में डिकाये हुए अनुशासन पर आनन्दित होइए। अपने ही निर्णयों का पालन ना करने पर आत्मशक्ति कमज़ोर हो जाती है।
जब महिलाएँ “परफेक्ट होना है” से “नियमित होना है” पर आती हैं, तब प्रगति शांति से होती है। यह मनोबल जलाने की बात नहीं है, अपनी नज़रों में अपनी पहचान बनाने की बात है—“मैं वो व्यक्ति हूँ जो डिनर के बाद 10 मिनट चलता/चलती है।”
भारतीय संस्कृति, समाज और जेंडर अनुरूप कार्य क्षेत्र – दिनचर्या के संदर्भ में महत्वपूर्ण है -------------------------------------------------------------------
भारतीय समाज हमारी ताक़त भी हैं और कभी-कभी समस्या भी। होम-कुकिंग, साथ बैठकर भोजन करना, परिवार -ये हमारी संपत्ति हैं। पर “महिला आख़िर में खाए”, हर समारोह में मीठा आजकल अनेक मीठे, और सबका यह यह विश्वास कि “वो सब मैनेज कर लेगी,” ये स्त्री के लिए एक चुनौती भी हैं, और कोई शारीरिक व्याधि होने पर तनाव का कारण ।
अब देखें कि इसका हल क्या है?
- संस्कृति को जीवन में लीवर की तरह उपयोग में लायें। त्योहारों को हेल्थ रिचुअल बनाइए। सहज आनंद से त्यौहार उत्सव की तरह मनायें। साथ ही हर सदस्य में मिलजुलकर काम करने, इसे आपस में प्रेम बढ़ाने का अवसर मानें। उदाहरण के लिए- दिवाली की सफ़ाई, कुकिंग, पूजा की तैयारी मिल कर करें। डिनर के बाद मिल कर लम्बा वॉक करे , पारंपरिक स्नैक्स के रेसिपी में कुछ हेल्थी परिवर्तन ट्राय करें। नवरात्रि में कज़िन्स-स्टेप-चैलेंज, रविवार को परिवार के साथ फल-सब्ज़ी की खरीदारी- अपनी पसंद की सब्जी सब लें, भोजन का स्वाद बढ़ जाएगा। इस तरह परिवार को लायबिलिटी नहीं,एसेट बना लें ।
- स्वास्थ्य की बाधाओं को नाम दीजिए और दूर कीजिए -“मुझे अपने लिए 30 मिनट चाहिए”—यह कहना ठीक है। बेटों-पति से एक काम लेना ठीक है। स्वास्थ्य परिवार का प्रोजेक्ट है, अकेले महिला का नहीं। स्वयं को अपराधबोध से बचा कर रखें।
मिड-लाइफ़, चालीस के बाद का समय अपने प्रति सहानुभूतिपूर्ण भाव की अपेक्षा रखता है,-शरीर का आकार बदलता है, मासिक धर्म के ड्यूरेशन में,नियमितता में परिवर्तन होता है, , इच्छाऐं बदलेंगी, त्वचा-बाल बदलेंगे, प्राथमिकताएँ भी बदल जाएँगी । इन परिवर्तनों से आपका आत्मसम्मान कम नहीं होना चाहिए । स्वास्थ्य के लिए जागरूक होना, प्रयास करना कोई “अपराध ” नहीं है। यह अपने एवं अपने परिवार के भविष्य के लिए आवश्यक है, एक उपहार ही है।
एक आसान 5-दिवसीय प्लान (यहीं से शुरू करें)
अगर मन में परिवर्तन की छोटी-सी चिंगारी जगी है, उसे पकड़ लीजिए और शूरू हो जाइए। प्रत्येक दिन एक पॉइंट और जोड़ते जाइए।
- दिन 1 — आहार: जो भी खाएँ-पीएँ, सही सही लिखिए। क्या, कितना, कब?
- दिन 2 — विहार : जो भी एक्टिविटी की है, लिखिए।कितने कदम? कितना एफर्ट?
- कोई विशिष्ट व्यायाम जैसे- 1-मिनट में कितने उठ-बैठ (कुर्सी से) टेस्ट + डिनर के बाद 10 मिनट वॉक या कुछ और?
- दिन 3 —सोने की तैयारी : सोने से 30 मिनट पहले सारी स्क्रीन्स से दूरी बनाइए और एक रात आज़माइए।
- दिन 4 — अनुलोम-विलोम : दोपहर भोजन पश्चात थकान हो तब २ मिनट ध्यान से अनुलोम विलोम का अभ्यास ।
- दिन 5 — साथी अपनाइए : किसी एक को अपने नए कदम में साथ जोड़िए।
अगले हफ्ते भी यही पाँच दिन दोहराइए, पर हर दिन एक छोटा अपग्रेड—सब्ज़ी की एक सर्विंग और, वॉक में 2 मिनट और, सोने का समय 5 मिनट पहले, एक अनुलोम विलोम सेट और, एक और साथी को कॉल। खेल भावना रखें, इसमें आनंद लीजिए, यह सज़ा नहीं है। याद रखिए, यह आनंद ही आपको ऊर्जावान और प्रेरित रखेगा!
अगर यह लाइव वर्कशॉप होता, तो…
हम श्लोक से शुरुआत करते, सामूहिक संकल्प लेते, और छह स्तंभों पर हाथ-से-हाथ दिखाते—भारतीय थाली कैसे संतुलित करें, दीवार के सहारे पुश-अप कैसे करें , काफ-हैमस्ट्रिंग स्ट्रेच कैसे, फोन का “सनसेट मोड” कैसे सेट हो, 4–6 ब्रीदिंग कैसे। फिर हर व्यक्ति अगले 14 दिनों का तीन-लाइन का व्यक्तिगत प्लान लिखता और हम उन्हें साथियों में जोड़ते। समापन स्वास्थ्य व आनंद के प्रति योजना के पारिवारिक संकल्प के साथ होता ।
ब्लॉग का यह रूप वही सब बातें शब्दों में पकड़े हुए है—ताकि आप इसे सुरक्षित रखें, दोबारा पढ़ें, कार्यान्वित करें, इसके लाभ स्वयं अनुभव करें, और अपने अपने सर्कल तक भेजें। कोई भी बदलाव, सही साथ मिलने पर में आसान होता है।
फिर लौटते हैं श्लोक पर
चालीस के बाद शरीर संतुलन चाहता है, वीरता का दिखावा नहीं। मन कोमल अनुशासन चाहता है, अपराधबोध नहीं। और हृदय साथ चाहता है—ऐसे लोगों का जो आपके छोटे-छोटे कदमों की दाद दें, और ठोकर पर थाम लें।
मैंने इसे काम करते देखा है—मरीज़ों में, अपने घर में, अपनी जिंदगी में। जब हम खुद को थोड़े से शुरू करने और अभ्यास में नियमित रहने की अनुमति दे देते हैं, मिड-लाइफ़ गिरावट नहीं, गहराई बन जाती है। हर सुबह हल्कापन, काम में स्थिरता, घर में अपनापन, मन में आनंद और शांति, और वे सपने जिनको टाल रखा था—वे फिर से संभव लगने लगते हैं। हमारे पास अभी कई दशक हैं—क्यों न उन्हें आत्मनिर्भर, अनुशासित, उत्साहपूर्ण और आनंदमय बनाया जाए?
मेरा आपको सहज सरल निमंत्रण है : अगले दो हफ्तों में छह स्तंभों में से कोई एक चुनिए, अपना “क्यों” एक पर्ची पर लिखिए और रोज़ दिखने वाली जगह चिपकाइए। अपना पहला छोटा कदम किसी अपने भरोसेमंद साथी को बताइए। फिर धीमे-धीमे अगले स्तंभ पर जाइए। दौड़ की आवश्यकता नहीं है , लय बनाये रखिए। मिड-लाइफ़ हमारे जीवन का सबसे रचनात्मक, साहसी और आनंदपूर्ण समय बन सकता है—आईए इसे, एक-एक दिन करके, मिलकर गढ़ें।
— डॉ. आशा जैन
यह ब्लॉग, RMSCON लाइफ़स्टाइल वर्कशॉप की मेरी भूमिका और स्लाइड्स से जन्मा है—अब आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए।
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