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रायपुर मेनोपॉज़ सोसाइटी का वार्षिक सम्मेलन 19–20 जुलाई को आने वाला था। मैं—आयोजन अध्यक्ष और वैज्ञानिक प्रभारी—ऐसा वर्कशॉप का विषय ढूँढ रही थी जो सच में काम का हो, ट्रेंडी भी हो और इस समय की ज़रूरत भी। क्लिनिक में रोज़ मिलती महिलाएँ मेरे दिमाग़ में घूमती रहीं—कोई गरमी, घबराहट और रात में पसीना पसीना होकर आती, किसी का बीपी ऊपर-नीचे, किसी का शुगर बॉर्डरलाइन, घुटनों में दर्द, नींद उचटती, मन बेचैन। ऊपर से घर-परिवार की ज़िम्मेदारियाँ, काम की डेडलाइन्स, माता-पिता और बच्चों की ज़िम्मेदारी—सब एक साथ। बार-बार यही बात सामने आई कि इन सबके बीच एक ही “मैजिक रेमेडी”, “जादू की छड़ी” है जो सच में असर करती है—लाइफ़स्टाइल में सहज बदलाव

सब जानते हैं, फिर भी होता क्यों नहीं है ?

यही सवाल मेरे वर्कशॉप की रीढ़ बना—और अब यही ब्लॉग है। मैं चाहती हूँ कि आप इसे ऐसे पढ़ें जैसे हम चाय पर बात कर रहे हों, न कि मैं मंच से भाषण दे रही हूँ। यह मेरे वर्कशॉप के ओपनिंग टॉक का विस्तार है—ताकि एक भी बात छूटे नहीं। यह डॉक्टर्स के लिए नहीं, आप के लिए है—सीधी, समझ में आने वाली, और विज्ञान पर आधारित ।

एक श्लोक जिसने दिशा दी

मेरे लिए मध्य आयु (mid-life) पर कोई भी चर्चा गीता के इन दो श्लोकों (अध्याय 6) से शुरू होती है, जो मैंने वर्कशॉप में भी रखे—

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ (6.5)

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥ (6.17)

इनका बोलचाल का प्रैक्टिकल अर्थ मेरे लिए कुछ यूँ है—

  • ख़ुद को ऊपर उठाइए; खुद को गिराइए मत। आप अपने सबसे बड़े दोस्त भी हैं और सबसे बड़े दुश्मन भी। मिड-लाइफ़ में हमें अपने ही पक्ष में खड़ा होना है।
  • खाने-पीने, चलने-फिरने, काम में, सोने जागने में संतुलन—यही दुख को कम करता है। हमारी रोज़मर्रा की लय ही सबसे शक्तिशाली थेरेपी बन सकती है।

यह बात बहुत शक्ति देती है—ड्राइविंग सीट पर मैं हूँ। दवा-इलाज अपनी जगह ज़रूरी हैं, पर मेरी दिनचर्या भी उपचार है। यही हमारे वर्कशॉप और इस ब्लॉग का हृदय है: 40+ में लाइफ़स्टाइल/ जीवनचर्या को मुख्य थेरेपी बनाइए।

मिड-लाइफ़ इतनी अहम क्यों है?

मिड-लाइफ़ कोई एक दिन नहीं, एक लंबा पुल है।बचपन और वृद्धावस्था इस जीवन की नदी के दो किनारे हैं। हार्मोन बदलते हैं, मेटाबॉलिज़्म धीमा पड़ता है, मसल्स अगर इस्तेमाल न हों तो ढीले पड़ते हैं, नींद हल्की हो जाती है, मूड में हलचल रहती है। इसी समय डायबिटीज़, हाई बीपी, दिल की बीमारी, हड्डियों की कमज़ोरी , कुछ कैंसरों का जोखिम, और चिंता-उदासी बढ़ने की संभावना रहती है। उधर घर-समाज में हम धुरी बनते हैं—एक तरफ़ बच्चे और एक तरफ़ माता-पिता और बीच में हम।

अच्छी खबर—किसी भी रोग की संभावना आपका प्रारब्ध नहीं होता। समय रहते छोटे-छोटे बदलाव बहुत-सी बीमारियों को टाल देते हैं, और अगर बीमारी आए भी तो इलाज बेहतर काम करता है। और इससे भी अच्छी खबर? एक अच्छी आदत अक्सर बाकी को साथ खींच लाती है—नींद थोड़ी सुधरी तो उल्टा सीधा खाने की इच्छा शांत; रोज़ चलना शुरू किया तो मूड अच्छा, हड्डियाँ, जोड़ और मांसपेशियां आपको धन्यवाद देंगी; फाइबर बढ़ाया तो ऊर्जा टिकाऊ, पेट साफ़ ।

मैं मिड-लाइफ़ हेल्थ को छह आसान स्तंभों (Six Pillars) में बताती हूँ—हर स्तंभ व्यावहारिक, विज्ञान पर आधारित और भारतीय जीवन के अनुकूल है ।

प्रथम स्तंभ: ऐसा भोजन जो आपको भी प्यार करे

हमारे घरों में महिलाएँ परंपरा से अक्सर अंत में भोजन करती हैं, सब्जी वगैरह पर्याप्त बची तो ठीक नहीं तो अचार से खा लेंगी। “अपने लिए ” बनाने में आलस आता है, अपराधबोध भी होता है। मैं कहती हूँ—विशेष भोजन नहीं, संतुलित भोजन करना चाहिए, और वह पूरा परिवार ले सकता है।

थाली या प्लेट का सरल नियम है :

  • आधा प्लेट—सब्ज़ियाँ और फल (ताज़े, मौसम के, रंग-बिरंगे)
  • एक चौथाई—प्रोटीन (दालें, चना/राजमा, सोया, पनीर, दही, अंडा; नॉन-वेज लेते हैं तो मछली/चिकन)
  • एक चौथाई—साबुत अनाज (ज्वार-बाजरा-रागी के साथ गेहूँ की रोटी; या ब्राउन/रेड राइस; या मिलेट जिसे श्रीधान्य अपने गुणों के कारण ही कहा गया है )

पाँच छोटे नियम सारे दिन को संभाल लेते हैं—

  1. फाइबर + प्रोटीन से शुरुआत। पोहा है तो चना/मटर और दही जोड़िए; इडली है तो सांभर और तिल या मूँगफल्ली की सूखी चटनी बढ़ाइए; पराठे के साथ दही और एक कटोरी अंकुरित चना-मूंग /सलाद।

  2. शुगर स्पाइक काबू में। फल के साथ कुछ फल्ली/बादाम , चाय के साथ मुट्ठीभर भुना चना; मीठे पेय से दूरी; मिठाई सच में “विशेष अवसरों ” वाली रहे।

  3. तेल घी दुश्मन नहीं हैं- पकाने के तरीके के हिसाब से तेल (सरसों/मूँगफली/तिल, गौ घृत ), थोड़ा बदल बदल कर प्रयोग करें । सोयाबीन- सूरजमुखी तेल, रसोई के बाहर कर दें।फैट्स की मात्रा पर सावधानी रखें ।

  4. चार बजे की भूख की तैयारी। पहले से तय स्नैक—भुना चना, छाछ, नारियल का टुकड़ा, फल + कुछ बादाम—तय है तो बिस्किट, नमकीन, मिक्सचर की ओर मन नहीं जाएगा।

  5. पानी याद रखिए। दिन भर सादा पानी; चाहें तो नींबू पानी/छाछ/गर्म पानी।
    कई बार प्यास को भूख समझने की गलती होती है, पहले पानी पीकर देखें।

मैं सात दिन का ईमानदार फूड-ऑडिट करने के लिए कहती हूँ—जो भी खाया-पिया है, लिखिए, जजमेंट मत करिए, स्वयं से मत छिपाइये । पैटर्न खुद बोलेंगे—जैसे देर रात भारी डिनर की जगह थोड़ा पहले और हल्का, या दो रोटियों के साथ सब्ज़ी के लिए बड़ी कटोरी का उपयोग करना। मीठा लेने की आदत हो तो १-२ खजूर या फल लें, मिठाई केवल विशेष अवसरों के लिए रखें।

द्वितीय स्तंभ: चलना-फिरना—जो ज़िंदगी में फिट बैठे

हर किसी के लिए जिम संभव नहीं, और हर किसी को ट्रेडमिल पसंद भी नहीं। शरीर को फैंसी इक्विपमेंट नहीं, नियमितता की आवश्यकता होती है । मूवमेंट को तीन आसान प्रकारों में समझिए -

  • रोज़मर्रा का चलना-फिरना: छोटे काम पैदल, सीढ़ियाँ, घर के काम जानबूझकर करें ।
  • हृदय के लिए: 20–30 मिनट तेज़ चाल से चलना /साइक्लिंग/डांस/तैराकी —सप्ताह में ४-५ दिन; इसमें प्रयास इतना हो कि इस एक्सरसाइज के समय हल्का सांस भरे पर बात कर सकें ।
  • हड्डी, जोड़ और मांसपेशियों के लिए: हफ्ते में 2–3 दिन—कुर्सी तक उठना बैठना, दीवार वाले पुश-अप, रेसिस्टेंस-बैंड, हल्के वज़न उठाना , या आराम से किए गए सूर्यनमस्कार। इससे जोड़ों-हड्डियों की कार्य क्षमता बनी रहती है , रीढ़ मज़बूत होती है और शुगर भी बेहतर नियंत्रित होती है ।

जब शुरुआत शून्य से हो तो बहुत ही कम से शुरू कीजिए—भोजन के बाद 5 मिनट रोज़। फिर 7 मिनट , फिर 10। कैलेंडर में लिखिए। कमाल संख्या में नहीं, आदत में है। मैंने देखा है- 5 मिनट घर की चप्पल में चलने से शुरुआत करने वाली महिलाएँ कुछ ही माह में 30 मिनट तेज़ चाल और सही जूतों तक पहुँच जाती हैं। समय “मिलता” नहीं, नियमितता से लय बनती है जो फिर स्वभाव बन जाती है ।

अपनी प्रगति को स्वयं नापें —

  • कमर का नाप (नाभि के स्तर पर, रिलैक्स): महीनों में बदलाव देखिए; अपने कद-काठी के हिसाब से धीरे-धीरे घटाने का लक्ष्य।
  • सिट-टू-स्टैंड टेस्ट: 1 मिनट में बिना हाथ सहारे कुर्सी से उठना-बैठना गिनिए; हर कुछ हफ्तों में दोहराइए—यह प्रोग्रेस चार्ट है।

तृतीय स्तंभ : नींद—चुपचाप काम करने वाला डॉक्टर

नींद में सुधार से- मूड बेहतरहोता है , जंक फुड की इच्छा कम हो जाती है , बीपी कंट्रोल होने लगता है , दर्द कम अनुभव होता है। पर असल ज़िंदगी में फोन की रिंग , दिमाग़ की अनियंत्रित दौड़, हॉट-फ्लैश सभी नींद को डिस्टर्ब करते हैं । इसमें सुधार के लिए किसी चमत्कार की नहीं, कुछ अनुशासन की आवश्यकता होती है जो आप हर रात कर सकती हैं -

  • निश्चित समय -नाइट एंकर: अधिकतर दिनों में सोने-जागने का तय समय होना चाहिए, वीक एंड्स पर भी । शरीर और नींद के लिए नियमितता आवश्यक है।
  • सोने की तैयारी - रिचुअल (45–60 मिनट): गुनगुना स्नान, हल्का स्ट्रेच करना, धीमी नियंत्रित साँसें, हल्का पढ़ना/संगीत-बिस्तर पर लेटने से पहले।
  • शयन कक्ष -बेडरूम हाइजीन: कमरा सोने के लिए थोड़ा ठंडा,अंधेरा और शांत होना चाहिए; स्क्रीन बाहर; टीवी, मोबाइल, लैपटॉप, टेबलेट, कुछ भी शयन कक्ष में ना रहे।रात में अचानक पसीना आए तो छोटा तौलिया और पानी पास में रखें ; सूती वस्त्र पहन कर सोएं ।
  • चाय-कॉफ़ी बंद-कैफ़ीन कट-ऑफ: दोपहर ४बजे के बाद चाय-कॉफी न लें ; रात में तुलसी/नींबू-अदरक का पानी, गुनगुना दूध या केवल गरम पानी लें ।
  • झपकी -छोटी नींदें ठीक हैं : दिन में जल्दी 15–20 मिनट की झपकी ठीक है, परंतु देर दोपहर या शाम की झपकी रात की नींद बिगाड़ती हैं ।
  • अपनी नींद कमाइए – इतना शारीरिक श्रम करिए कि नींद की आवश्यकता हो। बिना श्रम, निद्रा दूर रहती है।

हॉट-फ्लैश से नींद टूटी तो तकिये से लड़िए मत—उठिए, पानी घूँट घूँट पीजिए , 2 मिनट 4–6 श्वास प्रश्वास कीजिए (4 गिनती में साँस अंदर लें , 6 से 8 में छोड़ें), और फिर लेट जाइए । अपने प्रति समझदारी और कोमलता, नींद के लिए ख़ुद से लड़ाई करने से बेहतर काम करती है।

अभी आप इसमें से कुछ अपनाने का प्रयास करें, शेष तीन स्तंभों की चर्चा अगली बार!

(भाग 1 यहीं खत्म। अब तक हमने—क्यों मिड-लाइफ़ खास है, श्लोक का सहारा, और तीन आधार: खाना, चलना-फिरना, नींद—कवर किए। अब आगे के तीन स्तंभ , स्वयं को बदलने का विज्ञान, और एक आसान 5-दिवसीय योजना की बात की है ।)

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